Shri Suktam Paath : प्रत्येक शुक्रवार करें श्री सूक्त का पाठ, घर में बरसेगी माता लक्ष्मी की कृपा

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श्री सूक्त पाठ / Shri Suktam Paath इस पाठ से घर में बरसेगी देवी लक्ष्मी की कृपा

Shri Suktam Paath : माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए श्री सूक्त पाठ करना शुभ माना गया है। हिंदू धर्म में देवी लक्ष्मी को धन, समृद्धि, आनंद और वैभव की देवी माना जाता हैं। प्रत्येक शुक्रवार (अथवा यदि हो सके तो प्रतिदिन) श्री सूक्त का पाठ (Shri Suktam Paath) करने से महालक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

इसे मां लक्ष्मी की अराधना करने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक है। श्री यंत्र के सामने श्री सूक्त का पाठ करने से इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। श्री सूक्त के पंद्रह छंदों में अक्षर, शब्दांश और शब्दों के उच्चारण से अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी के ध्वनि शरीर का निर्माण किया जाता है।

श्रीसूक्त ऋग्वेद के पांचवें मण्डल के अन्त में दिया हुआ है। श्रीसूक्त में मंत्रों की संख्या पन्द्रह है। सोलहवें मंत्र में फलश्रुति है। बाद में ग्यारह मंत्र परिशिष्ट के रूप में उपलब्ध होते हैं।

इनको लक्ष्मीसूक्त के नाम से स्मरण किया जाता है। आप प्रतीदिन भी श्री सूक्त का पाठ कर सकते है। जो आपके जीवन में धन धान्य और समृद्धि लाता है।

इति श्री सूक्त  का संपूर्ण पाठ (Shri Suktam Paath) पढ़िए यहां पर

Lakshmi mata Shree Suktam

हरी ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं, सुवर्णरजतस्त्रजाम् ।

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आ वह ।।१।।

 

तां म आ वह जातवेदो, लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।

यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम् ।।२।।

 

अश्वपूर्वां रथमध्यां, हस्तिनादप्रमोदिनीम् ।

श्रियं देवीमुप ह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम् ।।३।।

 

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।

पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम् ।।४।।

 

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।

तां पद्मिनीमीं शरणं प्र पद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ।।५।।

 

आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽक्ष बिल्वः ।

तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः ।।६।।

 

Lakshmi Maiya Shree Suktam

उपैतु मां दैवसखः, कीर्तिश्च मणिना सह ।

प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्, कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ।।७।।

 

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।

अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वां निर्णुद मे गृहात् ।।८।।

 

गन्धद्वारां दुराधर्षां, नित्यपुष्टां करीषिणीम् । 

ईश्वरीं सर्वभूतानां, तामिहोप ह्वये श्रियम् ।।९।।

 

मनसः काममाकूतिं, वाचः सत्यमशीमहि ।

पशूनां रूपमन्नस्य, मयि श्रीः श्रयतां यशः ।।१०।।

 

कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम ।

श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ।।११।।

 

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे ।

नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ।।१२।।

 

Maa Lakshmi Shree Suktam

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीम् ।

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आ वह ।।१३।।

 

आर्द्रां य करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।

सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ।।१४।।

 

तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।

यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम् ।।१५।।

 

य: शुचि: प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् ।

सूक्तं पंचदशर्चं च श्रीकाम: सततं जपेत् ।।१६।।

 

पद्मानने पद्म ऊरू पद्माक्षी पद्मसंभवे ।

त्वं मां भजस्व पद्माक्षी येन सौख्यं लभाम्यहम् ॥१७॥

 

अश्वदायि गोदायि धनदायि महाधने ।

धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे ॥१८॥

 

Mahalakshmi mata Shree Sukt

पुत्रपौत्र धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवे रथम् ।

प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु माम् ॥१९॥

 

धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः ।

धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमश्नुते ॥२०॥

 

वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा ।

सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः ॥२१॥

 

न क्रोधो न च मात्सर्य न लोभो नाशुभा मतिः ।

भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत्सदा ॥२२॥

 

वर्षन्तु ते विभावरि दिवो अभ्रस्य विद्युतः ।

रोहन्तु सर्वबीजान्यव ब्रह्म द्विषो जहि ॥२३॥

 

पद्मप्रिये पद्मिनि पद्महस्ते पद्मालये पद्मदलायताक्षि ।

विश्वप्रिये विष्णु मनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व ॥२४॥

 

Shree Lakshmi mata Shree suktam

या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी ।

गम्भीरा वर्तनाभिः स्तनभर नमिता शुभ्र वस्त्रोत्तरीया ॥२५॥

 

लक्ष्मीर्दिव्यैर्गजेन्द्रैर्मणिगणखचितैस्स्नापिता हेमकुम्भैः ।

नित्यं सा पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमाङ्गल्ययुक्ता ॥२६॥

 

लक्ष्मीं क्षीरसमुद्र राजतनयां श्रीरङ्गधामेश्वरीम् ।

दासीभूतसमस्त देव वनितां लोकैक दीपांकुराम् ॥२७॥

 

श्रीमन्मन्दकटाक्षलब्ध विभव ब्रह्मेन्द्रगङ्गाधराम् ।

त्वां त्रैलोक्य कुटुम्बिनीं सरसिजां वन्दे मुकुन्दप्रियाम् ॥२८॥

 

सिद्धलक्ष्मीर्मोक्षलक्ष्मीर्जयलक्ष्मीस्सरस्वती ।

श्रीलक्ष्मीर्वरलक्ष्मीश्च प्रसन्ना मम सर्वदा ॥२९॥

 

वरांकुशौ पाशमभीतिमुद्रां करैर्वहन्तीं कमलासनस्थाम् ।

बालार्क कोटि प्रतिभां त्रिणेत्रां भजेहमाद्यां जगदीस्वरीं त्वाम् ॥३०॥

 

Mahalakshmi devi

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।

शरण्ये त्र्यम्बके देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ नारायणि नमोऽस्तु ते ॥३१॥

 

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक गन्धमाल्यशोभे ।

भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥३२॥

 

विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम् ।

विष्णोः प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ॥३३॥

 

महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि ।

तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥३४॥

 

श्रीवर्चस्यमायुष्यमारोग्यमाविधात् पवमानं महियते ।

धनं धान्यं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ॥३५॥

 

ऋणरोगादिदारिद्र्यपापक्षुदपमृत्यवः ।

भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥३६॥

 

Lakshmi devi

य एवं वेद ।

ॐ महादेव्यै च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि ।

तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥३७॥

 

।। इति श्री सूक्तम समाप्ति ।।

श्री सूक्तम् देवी लक्ष्मी की आराधना करने हेतु उनको समर्पित मंत्र हैं। इसे ‘लक्ष्मी सूक्तम्’ भी कहते हैं। यह सूक्त, ऋग्वेद के खिलानि के अन्तर्गत आता है। इस सूक्त का पाठ धन-धान्य की अधिष्ठात्री, देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए किया जाता है।

श्री सूक्त के बारे में और अधिक जानकारी

आनन्द, कर्दम, श्रीद और चिक्लीत ये चार श्रीसूक्त के ऋषि हैं। इन चारों को श्री का पुत्र बताया गया है। श्रीपुत्र हिरण्यगर्भ को भी श्रीसूक्त का ऋषि माना जाता है।

श्रीसूक्त का चौथा मन्त्र बृहती छन्द में है। पांचवाँ और छटा मन्त्र त्रिष्टुप छन्द में है। अन्तिम मन्त्र का छन्द प्रस्तारपंक्ति है । शेष मन्त्र अनुष्टुप छन्द में है।

श्रीशब्दवाच्या लक्ष्मी इस सूक्त की देवता हैं।

श्रीसूक्त का विनियोग लक्ष्मी के आराधन, जप, होम आदि में किया जाता है। महर्षि बोधायन, वशिष्ठ आदि ने इसके विशेष प्रयोग बतलाये हैं । श्रीसूक्त की फलश्रुति में भी इस सूक्त के मन्त्रों का जप तथा इन मन्त्रों के द्वारा होम करने का निर्देश किया गया है।

आराधनाक्रम में श्रीसूक्त के पन्द्रह मन्त्रों का इस क्रम से विनियोग किया जाता है

  1. आवाहन
  2. आसन
  3. पाद्य
  4. अर्घ्य
  5. आचमन
  6. स्नान
  7. वस्त्र
  8. भूषण
  9. गन्ध
  10. पुष्प
  11. धूप
  12. दीप
  13. नैवेद्य
  14. प्रदक्षिणा
  15. उद्वासन

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Nitin Kumar
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 कविता देवी  हिन्दी में जानें ब्लॉग की Founder और Author है। इन्हें हमेशा से इंटरनेट पर जानकारी पढ़ना और उसे अन्य लोगों के साथ शेयर करना पसंद है। अगर आपको इनके द्वारा शेयर की गई जानकारी अच्छी लगती है तो आप इन्हे Social Media पर फॉलो कर सकते है। Thank You!

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